August 18, 2011

एक चुटकी अपनापन


उदासी के क्षणों में
अक्सर आ ही जाती है
पाँव तले परछाई
और चिल्ला पड़ता है मौन
ताकि आत्मा तक
पहुँच सके उसकी पुकार

मैं जो कुछ पल यूँ ही
चलता रहता हूँ
तुम्हारे साथ
सोचता हूँ
तुम अगर मेरे ज़ख्मों पर
अपने अल्फाज़ रख दो
तो गीत गाने लगेगी
मुस्कुराहटें


प्रेम धूप सा
निश्चल है
इच्छाओं की ऊँगली रख कर
इसे मैला ना करो


बोलती आँखों और खामोश होठों की
चलते फिरते पाँव, बंधे हाथ और उदास सायों की
इस वीरान दुनिया में
मैं तुमसे आखिर
और मांग भी क्या सकता हूँ
बस एक चुटकी अपनापन !!



Deep


चित्र साभार : सौमित्र आनंद

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक चुटकी अपनापन मिल जाए तो ज़िंदगी को कोई शिकायत ही न रहे .. बहुत अच्छी नज़्म

Unknown said...

100% poetry

great !

i like it so much.........

प्रवीण पाण्डेय said...

अपनेपन की एक आह ही पर्याप्त है।

केवल राम said...

प्रेम धूप सा
निश्छल है
इच्छाओं की ऊँगली रख कर
इसे मैला ना करो
वाह क्या बात कही है आपने ...प्रेम की पवित्रता को समझना आवश्यक है .....आपका आभार

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

shashi purwar said...

बहुत सुन्दर .. अपनेपन की तो एक बूँद ही बहुत है ........

Arvind kumar said...

माशाल्लाह.....

दिपाली "आब" said...

@masi jaan

:) love you

@albela ji

bahut shukriya :)

@praveen ji

sach kaha.. ek aah hi kafi hai. shukriya :)

@kewal ji

wahi samajhne ki ek chhoti si koshish hai ye nazm.. shukriya :)

@Dr Sahiba..

bahut shukriya :)


@Shashi ji

ji, mera bhi yahi maan.na hai.. but you know ye dil maange more ;)


@Sanjay ji

shukriya :)

@kumar ji

:)

yogesh dhyani said...

प्रेम धूप सा
निश्चल है
इच्छाओं की ऊँगली रख कर
इसे मैला ना करो

bahut achchi nazm hai deep

Shaifali said...

Bahut khubsoorat..

प्रेम धूप सा
निश्चल है
इच्छाओं की ऊँगली रख कर
इसे मैला ना करो