बहुत पुरानी नज़्म हाथ लगी आज.. जून 2009 में कही थी..तब से अब तक कितना कुछ बदल गया.. ये नहीं बदली .. ;)
अल्लसुबह की फीकी पीली किरणों में
बीती रात ने जो छोड़े
चमकने लगे हैं वो आँसू
वही मोती चुन रही हूँ…
अजब हाल है
सियाह रात के आँसू
कितने रंग समेटे हैं..
हाँ, मीठी हो चली है अब
दोपहर की धूप भी
घर में बदन ठिठुरता है
तेरी साँसों का पैरहन भी नहीं
वक़्त है कि सरकता ही नहीं
इंतज़ार का वक़्त है न
चलता भी है तो यूँ के
मोच आई हो पाँव में जैसे
शाम की ठण्ड रास आती नहीं
जमती साँसों की
गर्म सी आहट
बदलते मौसम की खबर देती है…
रात भी कातिलाना है
चांदनी की चादर काम आती नहीं
और कम्बल है एक दुआओं का
उसको बस ओढ़ के लेट जाती हूँ
नींद पर फिर भी पास आती नहीं
सुबह और शाम का मेरी
अब ये आलम है
तेरी आमद के इंतज़ार में
देहलीज हो गईं आँखें
इस बार ख़त में इल्तिजा भेज रही हूँ
जवाब में खुद ही आ जाना
कि जाड़े इस बार के वरना
जानलेवा हैं
जान लेके जायेंगे..!!
9 comments:
बड़ी ही भावमयी पंक्तियाँ।
very nice....wonderfull:)
ख्याब की तरह ही नाजुक ख्याल की कविता।
वाह वाह वाह कितनी भीनी भीनी मदमस्त कर देने वाली है रचना…………क्या खूब ख्वाब संजोया है…………शानदार दिल को छू गया।
हाँ, मीठी हो चली है अब
दोपहर की धूप भी
घर में बदन ठिठुरता है
तेरी साँसों का पैरहन भी नहीं
वक़्त है कि सरकता ही नहीं
इंतज़ार का वक़्त है न
चलता भी है तो यूँ के
मोच आई हो पाँव में जैसे
शाम की ठण्ड रास आती नहीं
जमती साँसों की
गर्म सी आहट
बदलते मौसम की खबर देती है…
रात भी कातिलाना है
चांदनी की चादर काम आती नहीं
और कम्बल है एक दुआओं का
उसको बस ओढ़ के लेट जाती हूँ
नींद पर फिर भी पास आती नहीं
सुबह और शाम का मेरी
अब येही आलम है
तेरी आमद के इंतज़ार में
देहलीज हो गईं आँखें
Deepali ji.. behad pasand aayi rachna.. aur jo upmaye di hain aapne wo sach mein behad achci hain.. jaise intjaar k palo ka moch aaye pairo jaise chalna... sanso ka pairhan.... duaao ki chaadar...
behad khub.. keep sharing.. :)
haan dipaali...
jaankar bahut achchhaa lagaa ki itane waqt pahle bhi itanaa achchhaa likh saktin thin tum....
badhaayi ho...
very- very nice...
apki rachnao kw bhaw apne sath baha le jate hain.
badhai.
very- very nice...
apki rachnao kw bhaw apne sath baha le jate hain.
badhai.
Beautiful creation Deepali!
I loved the lines-
वक़्त है कि सरकता ही नहीं
इंतज़ार का वक़्त है न
चलता भी है तो यूँ के
मोच आई हो पाँव में जैसे
Its so true...intejaar bhi badi kambhakt cheej hai! :)
Keep writing.
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