August 26, 2011

strawberry flavour


उसने मेरे हाथ को छुआ, मैं आँखें खोलती हूँ, वो मुस्कुराती है। उसकी क्रूर रहस्यमयी मुस्कराहट मुझे भीतर तक छील देती है! मैं जल्दी से एक नकली मुस्कान उठा कर पहन लेती हूँ। मैं मुस्कुराती हूँ, नहीं.. मैं कुछ ज्यादा, शिद्दत से मुस्कुराती हूँ। उस से भी ज्यादा खुश दिखने की कोशिश करती हूँ, लेकिन उसके सामने खुश होकर भी अपने को भीतर से बहुत छोटा महसूस करती हूँ। खुद से एक बार फिर और कमज़ोर हो जाती हूँ। लेकिन अपनी इस कमजोरी को छुपाने के लिए मैं उठ कर उसे गले लगाती हूँ, इस औचक मुलाक़ात से मैं विस्मित हूँ ऐसा अभिनय करती हूँ। पर इस खुशी की आड में उसे बस एक बार देख कर ही मैं अपने भीतर किसी कोने में, कहीं छुप कर बहुत जोर से चिल्लाकर, टूट कर, बिखर कर, बिलख कर रोती हूँ, क्यूंकि एक रोज मैंने उसे बहुत अपना पाया था, बहुत मान दिया था, बहुत प्रेम किया था, एक रोज वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी..दोस्त..।
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August 18, 2011

एक चुटकी अपनापन


उदासी के क्षणों में
अक्सर आ ही जाती है
पाँव तले परछाई
और चिल्ला पड़ता है मौन
ताकि आत्मा तक
पहुँच सके उसकी पुकार

मैं जो कुछ पल यूँ ही
चलता रहता हूँ
तुम्हारे साथ
सोचता हूँ
तुम अगर मेरे ज़ख्मों पर
अपने अल्फाज़ रख दो
तो गीत गाने लगेगी
मुस्कुराहटें


प्रेम धूप सा
निश्चल है
इच्छाओं की ऊँगली रख कर
इसे मैला ना करो


बोलती आँखों और खामोश होठों की
चलते फिरते पाँव, बंधे हाथ और उदास सायों की
इस वीरान दुनिया में
मैं तुमसे आखिर
और मांग भी क्या सकता हूँ
बस एक चुटकी अपनापन !!



Deep


चित्र साभार : सौमित्र आनंद