उसने मेरे हाथ को छुआ, मैं आँखें खोलती हूँ, वो मुस्कुराती है। उसकी क्रूर रहस्यमयी मुस्कराहट मुझे भीतर तक छील देती है! मैं जल्दी से एक नकली मुस्कान उठा कर पहन लेती हूँ। मैं मुस्कुराती हूँ, नहीं.. मैं कुछ ज्यादा, शिद्दत से मुस्कुराती हूँ। उस से भी ज्यादा खुश दिखने की कोशिश करती हूँ, लेकिन उसके सामने खुश होकर भी अपने को भीतर से बहुत छोटा महसूस करती हूँ। खुद से एक बार फिर और कमज़ोर हो जाती हूँ। लेकिन अपनी इस कमजोरी को छुपाने के लिए मैं उठ कर उसे गले लगाती हूँ, इस औचक मुलाक़ात से मैं विस्मित हूँ ऐसा अभिनय करती हूँ। पर इस खुशी की आड में उसे बस एक बार देख कर ही मैं अपने भीतर किसी कोने में, कहीं छुप कर बहुत जोर से चिल्लाकर, टूट कर, बिखर कर, बिलख कर रोती हूँ, क्यूंकि एक रोज मैंने उसे बहुत अपना पाया था, बहुत मान दिया था, बहुत प्रेम किया था, एक रोज वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी..दोस्त..।
आगे पढ़ें .