September 15, 2012

मिला हर बार तू होकर किसी का

नहीं सुनता है वो आहो बुका क्या?
कहो बहरा हुआ अपना खुदा क्या?

है फैला ज़हर ये वादी में कैसा?
कहीं से आई नफरत की हवा क्या?

गिला, शिकवा, शिकायत कर भी लेता
मगर तुझसे मैं कहता भी, तो क्या क्या?

मैं सदियों से तेरे दर पर खड़ा हूँ
यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या?

वो फिर से रूठ कर जाने लगा है
नहीं होगा कोई अब मोजिज़ा क्या?

तेरे अल्फाज़ सीले सीले क्यूँ हैं?
कहीं कोई अब्र है तुझमें दबा क्या?

बदन की सारी गिरहें खुल रही हैं
मुझे फिर तेरी आँखों ने छुआ क्या?

मिला हर बार तू होकर किसी का
मैं तुझसे आखिरश फिर मांगता क्या?

तुझे पाया तो खुद को खो दिया, सच!
वगरना तुझमें खुद को ढूँढता क्या?

बडी शिद्दत से देखे हो लकीरें
मिरा भी नाम है इनमें लिखा क्या?

उदासी है, उदासी थी, रहेगी
तुम्हारे बाद अब दिल में रहा क्या?

मेरे चेहरे को यूँ तकते हो कैसे?
तुम्हे खोया हुआ कुछ मिल गया क्या?

तुम्हे हर पल शिकायत ही है मुझसे
कभी जो मैं कहूँ, तुमने सुना क्या?

कोई आता नहीं कितना पुकारो
गया मतलब तो फिर अब राबता क्या?

खुदा के नूर से है 'आब' रौशन
वगरना नाम है और नाम का क्या?

March 29, 2012

उदासियों के मौसम में

अंधेरों में अतीत तलाशते हुए
हाथ लगता है खालीपन
भूली बिसरी याद कभी भटकते हुए
टकरा जाये तो गिर पड़ती हूँ
कभी कोई खाब छूट कर हाथ से
गिर जाए तो चुभ जाते हैं निहित रिश्ते पाँव में
रिसता रहता है दर्द
बूँद बूँद टूट कर पलकों से
उदासियों के मौसम में !!